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वैचारिकी

एकता और श्रेष्ठता का गणतंत्र

रजनीश कुमार शुक्ल


26 जनवरी का दिन एक संप्रभु राष्‍ट्र के रूप में भारत के पुनरोदय का दिन है। भारत की जनता के लिए भारत की जनता का शासन और भारत की जनकांक्षाओं का साकार प्रकटीकरण 26 जनवरी 1950 को राष्‍ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निर्वाचन और पदग्रहण सम्‍पन्‍न कर हुआ था। गणतंत्र के रूप में भारत का उभरना राष्‍ट्र के अं‍तिम व्‍यक्ति की आकांक्षा को राष्‍ट्र की प्रथम आकांक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए। राष्‍ट्र शासन से निर्मित नहीं होता अपितु जन से निर्मित होता है। इसको राष्ट्राध्‍यक्ष और शाषनाध्‍यक्ष के रूप में भारत के दो प्रमुखों के बीच स्थिति के पार्थक्‍य से समझा जा सकता है। शासन जन के लिए होता है; जन शासित होने के लिए नहीं है। प्रत्‍येक व्‍यक्ति के समानता, बंधुता जन से राष्‍ट्र के बीच आरोहण की प्रक्रिया है। विविधताओं के बीच विभेद होते हुए भी सबमें बंधुत्‍व की स्‍थापना यह भारत के संवैधानिक गणतंत्र का उद्देश्‍य और भारतीय गणराज्‍य का लक्ष्‍य है। भारतीय गणराज्‍य के 70 वर्ष हो गये। इन 70 वर्षों में विश्‍व के जाने कितने गणराज्‍य असफल हुए, जाने कितने एकीकृत राष्‍ट्र विभाजित हुए पर भारत जिसने अपने स्‍वतंत्रता आंदोलन के साथ ही एक जन एक राष्‍ट्र का भाव जन जन में जागृत किया था, बंटवारे, विभेद, वैमनस्‍य के अनेक कुत्सित षड़यंत्रों को असफल सिद्ध करते हुए भारत के जन गण को सुख, समृद्धि, समानता और बंधुता दिलाते हुए विश्‍व मानवता के प्रति अपने दायित्‍वों को पूरा करते हुए राष्‍ट्र के रूप में उभरा है।

26 जनवरी जहॉं एक गणराज्‍य के रूप में भारत के प्रकटीभूत होने की स्‍मृति का दिन है, वहीं यह भारत में न्‍याय की सर्वोच्‍चता की स्‍थापना का भी अवसर है। आज ही के दिन सर्वोच्‍च न्‍यायालय के प्रथम मुख्‍य न्‍यायधीश ने भी शपथ ग्रहण किया था जो गणराज्‍य की सफलता का आधार, सबको न्‍याय की गारंटी को प्रतिबिंबित‍ करता है । आज 70 वर्ष के इस प्रौढ़ गणतंत्र में राष्‍ट्रीय जीवन के प्रति जिस विशिष्‍ट निष्‍ठा की निर्मिति हुई है उसका स्‍मरण करना भारत के जन गण का कर्तव्‍य है। यह भारतीय गणराज्‍य की सफलता ही है कि दुनिया के महान और विशाल लोकतंत्र जहॉं सत्‍ता के अंतरण क्रम में संघर्ष का शिकार हो रहे हैं, प्राचीनतम् लोकतंत्र और गणराज्‍य में राष्‍ट्र प्रमुखों की निष्‍ठा प्रश्‍नों के दायरों में आ रही है, भारत में राष्‍ट्र के सर्वोच्‍च पदों पर आसीन व्‍यक्तियों की नियति और निष्‍ठा असंदिग्‍ध रूप से प्रामाणिक रहीं है। नीति को लेकर मतभेद है और होने भी चाहिए। मतभेदों से ही लक्ष्‍य प्राप्ति के विविध रास्‍ते खुलते हैं। भारतीय लोकतंत्र अपनी गणतांत्रिक पद्धति में मतभेदों के होते हुए भी एक निर्णय पर पहुचकर उसको क्रियान्वित करने के लिए संकल्‍पबद्ध राष्‍ट्र के रूप में संपूर्ण विश्‍व में स्वीकृति प्राप्‍त कर चुका है।

इस बार का गणतंत्र दिवस हम एक वैश्विक महामारी से संघर्ष में प्राप्‍त विजय के मुहाने पर मना रहे हैं और यह अवसर अपने आप में भारतीय गणतंत्र के महान और उदात्‍त लक्ष्‍यों को स्‍पष्‍ट करता है। साथ ही भारत के जन गण के अंदर जीवन मूल्‍य के रूप में व्‍याप्‍त वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का प्रकटीकरण भी करता है। भारतीय जन ने कोरोना की विश्‍वव्‍यापी महामारी को चुनौती के साथ एक अवसर के रूप में देखा, जो इस बात का प्रमाण है कि इस महान राष्‍ट्र और श्रेष्‍ठ गणराज्‍य की जीवन शक्ति जान और जहान दोनों के लिए सगुण सकारात्‍मक रूप से श्रेष्‍ठता को सृजित करने के लिए निरंतर यत्‍नशील है। दुनिया कोरोना में भी जब रोज़गार और व्‍यापार के अवसर देख रही है, कुछ राष्‍ट्रों ने इसे बाजार को प्राणवान बनाने के साधन के रूप में प्रस्‍तुत किया है, ऐसे में भारत ने 'हम भी बचेंगे और दुनिया को भी बचाएंगे' की एक ऐसी अवधारणा प्रस्‍तुत की है जो कि विश्‍व के इतिहास में दुर्लभ है। दुनिया के 14 देशों को न केवल मुफ्त वैक्सिन देना अपितु उन तक पहुंचाना अपने पड़ोसी देशों में वैक्सिन की इतनी खेप देना कि उनके हर नागरिक तक पहुचे, यह एक उदाहरण है। आज दुनिया के सभी कोनों से 21वीं शताब्दी के भारत के संदर्भ में जो एक सकारात्‍मक चित्र उभरा है वह स्‍वतंत्र, सम्‍प्रभूता सम्‍पन्‍न भारत गणराज्‍य को एक श्रेष्‍ठ राष्‍ट्र के रूप में आलोकित कर रहा है। यह गणराज्‍य जाति, भाषा, उपासना पंथ, खान-पान आदतों और व्‍यवहार के आधार पर विश्‍व के राष्‍ट्रों के टूटने का जो दौर चला उनके बीच भारत की विपुल विभिन्‍नता से जनित सभी संकटों को मात देते हुए एक राष्‍ट्र के रूप में उभर के सामने आया है। 70वें वर्ष में भारतीय गणराज्‍य ने भारत के लोगों को भारत की भाषा और बोली में सबको शिक्षा का एक ऐसा अभियान प्रारंभ किया है जो भाषा के आधार पर टूटे हुए राष्‍ट्रों को उनकी राष्‍ट्रीयता के पुनर्गठन के लिए सीख हो सकती है। साथ ही दुनिया के उन तमाम विचारधाराओं को एक सशक्‍त भारतीय प्रति उत्‍तर है जिन्‍होंने यह कल्‍पना की थी कि अपनी विभिन्‍नता और विरोधाभासों के बीच भारत असफल हो जाएगा, टूट जाएगा। संकट कश्‍मीर में हो, कन्‍याकुमारी का जन उस संकट को अपना मानकर खड़ा होता है। भूकंप कच्‍छ के रण में आता है, अरूणाचल का व्‍यक्ति उसे अपना संकट मानकर अपने बंधुओं के साथ खडा होता है। यह भाव ही भारतीय गणराज्‍य की शक्ति है। यह भाव ही एक सफल राष्‍ट्र के रूप में हमारे उभरने का संकेत है। इस भाव के साथ ही संपूर्ण विश्‍व मानवता के संकट में खडे होने का हमारा स्‍वभाव ही हमें पूरी दुनिया में एक अलग विशिष्‍ट और श्रेष्‍ठ राष्‍ट्र के रूप में स्वीकृति दिलाता है। इस एकता और श्रेष्‍ठता के सघनीभूत संकल्‍प के प्रकटीकरण का प्रतीक दिन है भारत का गणतंत्र दिवस।


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